‘नगरी-नगरी’ फिरा मुसाफिर…
घर का रस्ता भूल गया…!’

भाऊ थोरात हे वास्तव दर्शन करून देणारे साहित्यिक आहेत. त्यांनी लिहिलेल्या अनेक पुस्तकांच्या काही अंश जे आपल्या पर्यंत पोहचवत आहे. अर्थात त्यांच्या परवानगी शिवाय या बद्दल भाऊंची मन पूर्वक माफी मागतो . त्याच्या लेखनाचा आनंद घ्या .

भाऊ थोरात हे वास्तव दर्शन करून देणारे साहित्यिक आहेत. त्यांनी लिहिलेल्या अनेक पुस्तकांच्या काही अंश जे आपल्या पर्यंत पोहचवत आहे. त्यांच्या लिखाणात त्यांच्या विचारांची उंची कळते. आपल्या पानावर जे प्रसिद्ध करत आहोत. त्यासाठी त्यांची मूक परवानगी आहे असे गृहीत धरले आहे, याच कारणांनी भाऊंची मन पूर्वक माफी मागतो . त्याच्या लेखनाचा आनंद घ्या .


सभी लोग हर तीर्थ मे और भगवान को अपनी दु:ख भरी कहानीं सुनाने के लिए भगादौडी कर रहे है… क्या सच मे भगवान हमारी कहानी सुनता होगा…? और सुनेगा भी, तो क्यूँ सुनेगा…? ऐसा कौनसा ट्वीस्ट है हमारी कहानी मे…? फिर भी सभी तीर्थ मे भक्तों की होड मची हुई है…
कहां जाने से मेरा भला हो सकता है…? कहां जाने से मेरी पिडा कम हो सकती है…? किसको सुनाने से मेरे प्रश्न का उत्तर मिल सकता है…? कौन साधू , कौन महात्मा, किस सरकार के पास जाकर मै मेरी कहानीं सुना दूं…? और कहांसे मुझे आशीर्वाद मिल सकता है…?
और सही मायने में देखा जाये तो आपको जीवन में जो भी प्रश्न पैदा हुआ है, वह भगवान के कारन नहीं पैदा हुआ है… उसके जिम्मेदार आप खुदही है… और जब प्रश्न आपका खुदही का होगा, तो जवाब भी आपके पास ही होगा… पर हम लोग ठीक से अध्ययन करना ही नहीं चाहते…
कभी भी कोई गलत करम् करते समयपर हम लोग अपने आपको बडे शातीर, बडे चतुर, बडे बुद्धिमान समझते है… बेईमानी करना, ठगी करना, मिलावट करना कुछ लोगों का पेशा बन चुका है… बेईमानी का अंजाम क्या आयेगा, उसका परिणाम क्या हो सकता है, इस बातपर गौर करने के लिए हमारे पास समय ही नहीं है…
हर युग मे, कयी सदीयोंसे साधुसंत, महात्मा इस मामले मे समझाते आये है… पर हम है की समझने का नाम ही नहीं ले रहे है… कुछ बदमाश तो हमे सामने से जवाब देते है…
‘महाराजजी… कुछ फर्क नहीं पडता इससे… पुरी दुनियां इसी पर चल रही है… अच्छा रहने से किसका भला होता है…?’
अगर यही आपकी सोच है, यही आपका विचार है, तो एक बात का जवाब तुम भी दो…
‘बुरा कर्म करनेवालों का कब भला हुआ है…? और जो भला हुआ दिखाई दे रहा है उसकी अंदर की पिडाओंका, उसकी परेशानीयोंका तुम्ही कुछ पता है…? और बुरे कर्म करने वालोंका तुमने अंत देखा है कभी…?
इंसान कितना भी बुद्धिमान होगा, शातीर होगा, चतुर होगा, और कोई भी गलत कर्म करते समय उसका ब्रेन कभी धडकता नहीं होगा, लेकिन उसका दिल जरूर धडकता है… और इस धडकन की आवाज परमात्मा तक पहुंचती है… और साहेब… जिस दिन हिसाब शुरू होता है, उलटी गिनती शुरू होती है, तो फिर कर्मगती कभी रुक नहीं पाती… चाहे कितना भी दानधर्म करो, कितने भी होमहवन करो, कितनी भी तीर्थयात्रायें करो, फिर भी पहला हिसाब तो चुकता करना ही पडेगा…
कथा सत्संग मे हमलोग लोगों को अगर सवाल करते है…
‘पैसा काम मे आता है, या पुण्य काम मे आता है…?’
निश्चित तौरपर सामने से सभी लोग जवाब देते है…
‘पुण्यही काम मे आता है…!’
इतना अगर समझता है, तो तुमने कितना पुण्य किया है आज तक…? और थोडा बहुत तो जरूर किया होगा… क्यूँ की बहुतोंके पास जितना भी पैसा है, आधे से ज्यादा तो पाप की ही कमाई है… और उसी पापकर्म मुक्ती पाने के लिए उसमेसे अगर कोई थोडा बहुत पुण्य करेगा, फिर भी समयपर हमारी फटनेवाली ही है…
पुण्यकर्म करेगा, वो भी सालीकी शादी मे… चार साल की पढाई भी तुमने ही कारवाई थी… अब शादी मे रिश्ता भी तुमही देखोगे… सांसने बोला है…
‘हमारे पास तो कुछ भी नहीं है दामादजी… रिश्ता तो तुमने बडा देखा है, अब खर्चा भी तुमही करो…!’
इसे पुण्यकर्म मत समझो… ये तुम्हारी जिम्मेदारी है… हमेशा नेक कर्म करते रहो… ओ भी कोई फल की अपेक्षा किए बिना… जब दुसरों का दुखदर्द समझ पाओगे तब जाकर तुम्हारा दुःखदर्द कम हो सकता है… वरना कितने भी तीर्थो मे चक्कर काटते रहो, कुछ नहीं होगा…
मैने पहले भी कई बार बताया है, कि तीर्थोमे, मंदिरोमे जाकर वहांपर अपना दुखडा सुनाने से कुछ नहीं होता… लोगों को यही वहम है, कि हम शिर्डी गये, हम तिरुपती गये, हम माँ वैष्णोदेवी गये, सभी जगहपर अपनी दु:खभरी कहानीं सुनाकर आए… वहांपर कुछ अलिखित अर्जिया देकर आये है… अब मालिक उसपर दस्तखत कर देगा… थोडेही समय मे हमारी सभी इच्छाएं पुरी हो जायेगी… अगर यही तुम्हारी सोच है, यही तुम्हारी धारना है, तो तुम लोग वहम मे जी रहे हो…
आपके सत्कर्म ही आपको बचा सकते है, और आपके पापकर्म ही आपको लेकर डूब सकते है… यहांपर सब होशियार है… कोई पागल नहीं है… जो एक रुपये का सिक्का जानता है, सौ, दोसौ, और पांचसौ की नोट जानता है, जो सोना और चांदी मे फर्क जाता है, दुनियां मे कोई भी पागल नहीं है… अच्छा, बुरा सब जानते है…
अफसोस यहीं है, की मुझे और मेरे विचारों का मजाक बनानेवाले, उनका तमाशा मुझे ही देखना पडता है…

By Admin

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